किसी के जाल में आ कर मैं अपना दिल गँवा बैठा मुझे था इश्क़ क़ातिल से मैं अपना सर कटा बैठा ग़ज़ब का संग-दिल आग़ाज़ से ही बे-मुरव्वत था कि जिस से दूर रहना था मैं उस के पास जा बैठा मिरा माबूद तो इश्क़-ए-बुताँ से लाख अफ़ज़ल था मुझे किस से लगाना था मैं दिल किस से लगा बैठा