किसी ख़ामोश चेहरे पर वो इत्मीनान का मंज़र जिगर को काटता है अब भी क़ब्रिस्तान का मंज़र अज़ाब-ए-शिद्दत-ए-कर्ब-ए-जुदाई को वो क्या जाने कि देखा ही न हो जिस ने निकलती जान का मंज़र उठी कुर्सी कटा सब्ज़ा गिरे पत्ते उड़ी चिड़ियाँ तुम्हारे बा'द क्या से क्या हुआ दालान का मंज़र कहाँ हूँ कौन हूँ ये पूछता फिरता हूँ लोगों से कि मुझ से खो गया शायद मिरी पहचान का मंज़र दरीदा-नक़्श ज़ख़्मी लफ़्ज़ लर्ज़ीदा क़तारों में लहू में किस ने रंगा है मिरे दीवान का मंज़र हमारे क़त्ल पर चश्म-ए-फ़लक में ख़ून उतरेगा फ़ज़ाओं में सजेगा सुर्ख़ से तूफ़ान का मंज़र नहा के प्यार की बारिश में उस ने धूप जब पहनी नज़र में घुल गया क़ौस-ए-क़ुज़ह के थान का मंज़र दरून-ए-ज़ेहन जब ज़ेबाइश-ए-अफ़्कार ही न हो घरों में क्या है फिर आराइश-ए-सामान का मंज़र वो जितने दीप अंदर हैं वो आँखों में ही जलते हैं और आँखें ही दिखाती हैं दिल-ए-वीरान का मंज़र समझता हूँ तिरी सारी कहानी मैं कि क्या होगी है दिखने में अगर ऐसा तिरे उन्वान का मंज़र भरी दुनिया का 'ताहिर' चप्पा चप्पा छान मारा है नहीं पाया कहीं भी शहर-ए-पाकिस्तान का मंज़र