किसी की खोई हुई याद के इशारे पर मैं रंग ढूँडने निकला हूँ उस सितारे पर भले ये मेरा बदन रेत बन के उड़ जाए मैं अपने ज़ोर में बहता रहूँगा धारे पर वही दमकते हुए सुर्ख़ लब वही आँखें गुमान जिन का हुआ था मुझे शरारे पर जगह जगह से हवा काटने लगी है बदन बिखर न जाएँ छतों पर कहीं हमारे पर मिरी गिरफ़्त में आते नहीं थे जिस के ख़्वाब उसी ने दी थीं ये आँखें मुझे ख़सारे पर मैं पार कर चुका दरिया-ए-ख़्वाब जब 'साजिद' तो वो दिखाई दिए दूसरे किनारे पर