किसी की मेहरबानी हो रही है ग़ज़ल की तर्जुमानी हो रही है जफ़ा तो मोरिद-ए-इल्ज़ाम ठहरी वफ़ा भी पानी पानी हो रही है तिरा अंगड़ाइयाँ लेना भी जानम क़यामत की निशानी हो रही है चमन वीरान होता जा रहा है ये कैसी बाग़बानी हो रही है कोई रोता है मेरी बेबसी पर किसी को शादमानी हो रही है ‘नवेद-अतहर' किसी पे जाँ फ़िदा कर अबस रुस्वा जवानी हो रही है