किसी की याद फिर लहरा गई तो बस इक पल में क़यामत आ गई तो चुराए फिरता है तू आँख मुझ से नज़र से गर नज़र टकरा गई तो नज़र से देखते हो चाहतों की मेरे चेहरे पे सुर्ख़ी छा गई तो अभी तो काँपता है जिस्म डर से हमारी रूह भी थर्रा गई तो बुज़ुर्गों की हिदायत साथ रखिए कभी जो ज़िंदगी बल खा गई तो फ़साना ज़िंदगी का क्या सुनोगे मिरी आँखों में बदली छा गई तो अभी दम लेने को ठहरूँ मैं कैसे सफ़र में फिर थकावट आ गई तो