किसी मरीज़ की चारागरी न कर पाए ये घर भी दूर मिरी बे-घरी न कर पाए मैं क्या करूँ कि तसल्लुत ख़मीर में ही न था तमाम उम्र कोई नौकरी न कर पाए शब-ए-विसाल गुज़ारी उदास रहते हुए दरख़्त भी मिरी दुनिया हरी न कर पाए ग़ज़ल वही है जो क़ारी का दिल हिला डाले वकील क्या है जो मुल्ज़िम बरी न कर पाए हुनर का रब्त रियाज़त से है अता से नहीं हसीन लोग कभी दिलबरी न कर पाए फ़ऊल फ़े'ल मफ़ा'ईल कर लिया लेकिन अरुज़ियों की क़सम शायरी न कर पाए बताओ दहरियों से क्या मुनाज़रा करोगे वहाबियों को तो तुम क़ादरी न कर पाए हर एक चीज़ को हद में रखा गया 'हमज़ा' मुबालग़े में भी उस को परी न करे पाए