किसी ने भी तो न देखा निगाह भर के मुझे गया फिर आज का दिन भी उदास कर के मुझे सबा भी लाई न कोई पयाम अपनों का सुना रही है फ़साने इधर उधर के मुझे मुआ'फ़ कीजे जो मैं अजनबी हूँ महफ़िल में कि रास्ते नहीं मालूम इस नगर के मुझे वो दर्द है कि जिसे सह सकूँ न कह पाऊँ मिलेगा चैन तो अब जान से गुज़र के मुझे