किसी ने फिर से लगाई सदा उदासी की पलट के आने लगी है फ़ज़ा उदासी की बहुत उड़ेगा यहाँ पर फ़सुर्दगी का ग़ुबार कि फिर से चलने लगी है हवा उदासी की ज़मीन-ए-दिल पे मोहब्बत की आब-यारी को बहुत ही टूट के बरसी घटा उदासी की नज़र नज़र में उदासी दिखाई देने लगी नगर नगर में है फैली वबा उदासी की किसी तबीब किसी चारागर के पास नहीं कोई इलाज कोई भी दवा उदासी की कोई इलाज नहीं है तो फिर दुआ ही करें कि छोड़ जाए हमें ये बला उदासी की ऐ आफ़्ताब ये आलम तिरा ग़ुरूब के वक़्त सिखाई किस ने तुझे ये अदा उदासी की ज़मीन-ज़ादों को विर्सा मिला है आदम से हुई थी ख़ुल्द से ही इब्तिदा उदासी की ये तेरे दिल से तिरी रूह में उतर जाए बिछड़ने वाले ने दी थी दुआ उदासी की ये दिल का कासा अभी ख़ाम है ऐ कूज़ा-गर तू और आँच पे उस को तपा उदासी की