किसी ने कह दी कोई बात हक़ मालूम होता है तभी चेहरे का तेरे रंग फ़क़ मालूम होता है सहीफ़ा ज़िंदगानी का बहुत आसाँ नज़र आया मगर जब पढ़ने बैठूँ तो अदक़ मालूम होता है जहाँ के दफ़्तर-ए-ग़म की हक़ीक़त ही है क्या वो तो हमारे दर्द-ए-दिल का इक रमक़ मालूम होता है हक़ीक़त में लहू है वो शहीदान-ए-मोहब्बत का कनार-ए-चर्ख़ जो रंग-ए-शफ़क़ मालूम होता है नमी है आँसूओं की ख़ूँ-चकाँ अल्फ़ाज़ हैं सारे ये मेरी ही कहानी का वरक़ मालूम होता है