किसी ने कैसे निभाई है आसमाँ से न पूछ न पूछ ताइर-ए-गुम-करदा-आशियाँ से न पूछ सहर बजा-ए-ख़ुद इक दास्ताँ न हो जाए हिकायत-ए-शब-ए-रफ़्ता मिरी अज़ाँ से न पूछ तिरे जमाल को महशर समझ रहे हैं लोग उमड के आई है ख़िल्क़त कहाँ कहाँ से न पूछ जवाब और तो मिल जाएँगे सभी लेकिन मिरा क़ुसूर ही अर्बाब-ए-दो-जहाँ से न पूछ लगा नुक़ूश-ए-क़दम का सुराग़ आप ज़रा ये बाग़ किस ने उजाड़ा है बाग़बाँ से न पूछ जो ख़ुश-बयाँ हैं सुना देंगे यूँ भी सब अहवाल जो बे-ज़बाँ का फ़साना है बे-ज़बाँ से न पूछ अगरचे इश्क़ है पूरे वजूद का दुश्मन मगर जो दिल पे गुज़रती है नीम-जाँ से न पूछ हर इक निगाह पे खुलता नहीं वो दर 'राहील' उधर का रास्ता सालार-ए-कारवाँ से न पूछ