किसी निगाह किसी दिल तलक नहीं पहुँचे रहे सफ़र में जो मंज़िल तलक नहीं पहुँचे जुनूँ अबस है जो मक़्तल तलक नहीं लाया वो सर ही क्या हैं जो क़ातिल तलक नहीं पहुँचे भँवर की चाह में ग़र्क़ाब हम हुए तो क्या सफ़ीने कितने ही साहिल तलक नहीं पहुँचे शिकस्त-ओ-फ़त्ह की लज़्ज़त से तुम नहीं वाक़िफ़ अभी तो तुम किसी मुश्किल तलक नहीं पहुँचे उन्हीं को दावा है बस्ती में दस्त-गीरी का वो दस्तगीर जो साइल तलक नहीं पहुँचे हैं सच के आइने जितने भी टूट जाएँगे हमारे हाथ जो बातिल तलक नहीं पहुँचे हमारे दर्द के क़िस्से हैं फ़र्द-ए-फ़र्दा भी रक़म न हो सके महफ़िल तलक नहीं पहुँचे