किसी परी के ख़यालों में रक़्स करते रहे हमारी आँख से आँसू निकल के उड़ते रहे हम ऐसे पत्ते अना-ज़ाद भी बला के थे बहार रुत में दरख़्तों से लड़ के झड़ते रहे किसी के लफ़्ज़ गिरे आबशार के मानिंद हमारे दिल में मुसलसल शिगाफ़ पड़ते रहे किसी को माँगने आई थी मिन्नतों से कोई कई फ़क़ीर मज़ारों पे सर पटख़ते रहे हमारी नींद न-जाने कहाँ भटकती रही हमारे ख़्वाब हमारे लिए तड़पते रहे तुम्हारे बा'द मैं हँसता रहा मगर यारम तुम्हारे बा'द तो दुश्मन भी रो के मिलते रहे अब उन को लोग 'हसन' शेष-नाग कहते हैं जो एक अर्सा मिरी आस्तीं में पलते रहे