किसी से और तो क्या गुफ़्तुगू करें दिल की कि रात सुन न सके हम भी धड़कनें दिल की मगर ये बात ख़िरद की समझ में आ न सकी विसाल-ओ-हिज्र से आगे हैं मंज़िलें दिल की जिलौ में ख़्वाब-नुमा रत-जगे सजाए हुए कहाँ कहाँ लिए फिरती हैं वहशतें दिल की निगाह मिलते ही रंग-ए-हया की सूरत हैं छलक उठीं तिरे रुख़ से लताफ़तें दिल की निगाह-ए-कम भी उसे संग से ज़ियादा है कि आइने से सिवा हैं नज़ाकतें दिल की दयार-ए-हर्फ़-ओ-नवा में कोई तो ऐसा हो कभी किसी से तो हम बात कर सकें दिल की सर-ए-जरीदा-ए-हस्ती हमारे बाद 'उमीद' लहू से कौन लिखेगा इबारतें दिल की