किसी से वादा-ओ-पैमान भी नहीं मेरा यहाँ से लौटना आसान भी नहीं मेरा मैं लख़्त लख़्त हुआ आसमाँ से लड़ते हुए मगर ये ख़ाक पे एहसान भी नहीं मेरा मैं सिर्फ़ अपनी हिरासत में दिन गुज़ारता हूँ मिरे सिवा कोई ज़िंदान भी नहीं मेरा सुकूत-ए-शब में तिरी चश्म-ए-नीम-वा के सिवा कोई चराग़ निगहबान भी नहीं मेरा धरी हुई कोई उम्मीद भी नहीं मिरे पास खुला हुआ दर-ए-इम्कान भी नहीं मेरा ये किस के बोझ ने मुझ को थका दिया कि यहाँ ब-जुज़-दुआ कोई सामान भी नहीं मेरा मैं उस की रूह में उतरा हुआ हूँ और 'शहज़ाद' कमाल ये है उसे ध्यान भी नहीं मेरा