किसी शय पर भी इख़्तियार नहीं ज़ीस्त में कुछ भी पाएदार नहीं ये भी है मो'जिज़ा मोहब्बत का ग़म कई कोई ग़म-गुसार नहीं मैं ने दुनिया निसार की जिस पर मुझ पे उस को ही ए'तिबार नहीं सारे मतलब के रिश्ते-नाते हैं कोई रिश्ता भी उस्तुवार नहीं हर घड़ी बे-क़रार रहता है दिल को हासिल कभी क़रार नहीं राहतों का तो ज़िक्र ही क्या है ग़म भी दुनिया में पाएदार नहीं लोग दुनिया के ख़ुद-ग़रज़ हैं 'करन' ये किसी के भी ग़म-गुसार नहीं