क़िस्मत को अपने लिक्खे के तईं कौन धो सके सब हो सके व-लेक ये इतना न हो सके फूलों की सेज उस के लिए फ़र्श-ए-ख़ार है तुझ बिन किसी तरह तिरा आशिक़ न हो सके तुझ बिन न कर सके मय-ए-इशरत से हल्क़ तर ख़ूँ-नाब-ए-ग़म से लब तिरा आशिक़ न हो सके गर चाहे गुलशन-ए-दिल-पुर-दाग़ की बहार तू तुख़्म-ए-अश्क जितने कि ऐ दीदा बो सके देखा असर तुम्हारा भी ऐ चश्म-ए-अश्क-बार कुछ कर सके न उस का घर अपना डुबो सके दिल की हवस निकाल लें आह-ओ-फ़ुग़ाँ भी आप ये भी न दरगुज़र करें जो उन से हो सके नईं जान-ओ-दिल के खोने 'जहाँदार' को दरेग़ याद उस की पर न जान-ओ-दिल अपने से खो सके