कितने बरसे नगर नगर पत्थर हौसले कर न पाए सर पत्थर जो निशाँ-ज़द हुए हैं अपने लिए वो तो सब आएँगे इधर पत्थर बात कह दी थी इक ख़ुदा-लगती मेरी सम्त आए किस क़दर पत्थर देख महँगी पड़ेगी मन-मानी बाँधने होंगे पेट पर पत्थर किस ने कीचड़ में संग मारा है पड़ गए किस की फ़हम पर पत्थर सोच के कर किसी पे संग-ज़नी आ भी सकते हैं लौट कर पत्थर सब पे हसरत की इक नज़र करके हो गई एक चश्म-ए-तर पत्थर अद्ल उन का 'नईम' क्या कहना फूल अपनी तरफ़ इधर पथर