कितनी आशाओं की लाशें सूखें दिल के आँगन में कितने सूरज डूब गए हैं चेहरों के पीले-पन में बच्चों के मीठे होंटों पर प्यास की सूखी रेत जमी दूध की धारें गाए के थन से गिर गईं नागों के फन में रेगिस्तानों में जलते हैं पड़े हुए सौ नक़्श-ए-क़दम पर आज ख़िरामाँ कोई नहीं है उम्मीदों के गुलशन में चकना-चूर हुआ ख़्वाबों का दिलकश दिलचस्प आईना टेढ़ी तिरछी तस्वीरें हैं टूटे-फूटे दर्पन में पा-ए-जुनूँ में पड़ी हुई हैं हिर्स-ओ-हवा की ज़ंजीरें क़ैद है अब तक हाथ सहर का तारीकी के कंगन में आँखों की कुछ नौरस कलियाँ नीम-शगुफ़्ता ग़ुंचा-ए-लब कैसे कैसे फूल भरे हैं गुल्चीनों के दामन में दस्त-ए-ग़ैब की तरह छुपा है ज़ुल्म का हाथ सितम का वार ख़ुश्क लहू की बारिश देखी हम ने कूचा-ओ-बर्ज़न में