कितनी महबूब थी ज़िंदगी कुछ नहीं कुछ नहीं क्या ख़बर थी इस अंजाम की कुछ नहीं कुछ नहीं आज जितने बरादर मिले चाक-चादर मिले कैसी फैली है दीवानगी कुछ नहीं कुछ नहीं पेच-दर-पेच चलते गए हम निकलते गए जाने क्या थी गली-दर-गली कुछ नहीं कुछ नहीं मौज-दर-मौज इक फ़ासला रफ़्ता रफ़्ता बढ़ा कश्ती आँखों से ओझल हुई कुछ नहीं कुछ नहीं साथ मेरे कोई और था ऐ हवा ऐ हवा नाम तू जिस का लेती रही कुछ नहीं कुछ नहीं शाम साकित शजर-दर-शजर रहगुज़र रहगुज़र आँख मलती उठी तीरगी कुछ नहीं कुछ नहीं जा के तू दिल में दर आएगा मेरे घर आएगा है जुदाई घड़ी दो घड़ी कुछ नहीं कुछ नहीं