किया है काम ये लैल-ओ-नहार आँखों ने दिखाया जल्वा-ए-परवरदिगार आँखों ने कभी दिखाया है पज़मुर्दा बाग़ फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ कभी दिखाई है फ़स्ल-ए-बहार आँखों ने मैं अपने दिल पे ये इल्ज़ाम धर नहीं सकता तबाह मुझ को किया सुरमा-दार आँखों ने हदीस-ए-दिल जो छुपाने की लाख कोशिश की मगर किया है उसे आश्कार आँखों ने हुई थी माँ की ज़ियारत भी बाद बरसों के बहाए अश्क भी बे-इख़्तियार आँखों ने तुम्हारी राह को तक कर ऐ यूसुफ़-ए-दौराँ किया है सुब्ह-ओ-मसा इंतिज़ार आँखों ने दिखा के ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा-ए-दिरहम-ओ-दीनार किया है दिल को सदा बे-क़रार आँखों ने तुम्हारी एक ही तस्वीर है जो पास मिरे उसी को प्यार किया बार बार आँखों ने ये अश्क इस लिए बहते हैं मेरी आँखों से किया है ख़्वाहिश-ए-दीदार-ए-यार आँखों ने तुम इन गुनाहों से तौबा करोगे कब 'नूरी' किए गुनाह हैं जो बे-शुमार आँखों ने