कोई ले कर ख़बर नहीं आता जो गया नामा-बर नहीं आता चाँद किस जा नज़र नहीं आता यार क्यूँ मेरे घर नहीं आता दम मोहब्बत का भर नहीं आता राज़ इफ़्शा तो कर नहीं आता इश्क़ क्या जाने ज़ाहिद-ए-बे-मग़्ज़ ढंग ये उम्र-भर नहीं आता पंडितो पत्तरे में देखो तो क्यूँ मिरा नामा-बर नहीं आता लाला हर साल रंग लाता है रंग-ए-दाग़-ए-जिगर नहीं आता वो तो कहते हैं सब्र कर चंदे और यहाँ सब्र कर नहीं आता कभी पूछो लिपट के सीने से अब तो मुँह को जिगर नहीं आता शीशा-ए-दिल में ओ परी-पैकर है परी तो उतर नहीं आता हम भी बातें बनाया करते हैं शे'र कहना मगर नहीं आता ग़ुंचा गुल हो के उन से कहता है किस का मुँह को जिगर नहीं आता रंग लाया नहीं अभी रोना अभी लख़्त-ए-जिगर नहीं आता नासेहा क्यूँ न हो ख़याल उन का ख़्वाब तो रात-भर नहीं आता उम्र-भर इक तुम्हीं को प्यार किया दिल कहीं इस क़दर नहीं आता मेरे मरने की क्या नहीं है ख़बर क्यूँ तू ऐ बे-ख़बर नहीं आता क्यूँ बिगड़िए बने बने न बने ख़ैर बंदे को शर नहीं आता ज़ब्ह मुझ को अनीले-पन ने किया क़त्ल क़ातिल को कर नहीं आता कूचा-ए-यार है कि जन्नत है जो गया फिर के घर नहीं आता यार कोठे पे अपने चढ़ता है मह फ़लक से उतर नहीं आता जी न चाहे जिसे मैं क्या चाहूँ मुझ को बे-मौत मर नहीं आता देख कर उन को जिस को देखे 'मेहर' कोई इतना नज़र नहीं आता