कोई मंजधार न धारा है ख़ुदा ख़ैर करे आज क्यों पास किनारा है ख़ुदा ख़ैर करे फिर नशेमन को सँवारा है ख़ुदा ख़ैर करे बर्क़ की आँख का तारा है ख़ुदा ख़ैर करे देखें लौट आती है आवाज़ कि मिलता है जवाब दिल ने फिर तुझ को पुकारा है ख़ुदा ख़ैर करे होश पाने का नहीं दिल कि जो पानी माँगे ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग का मारा है ख़ुदा ख़ैर करे ज़ेहन अपनाए हुए फ़िक्र पे वो छाए हुए घर न सामान हमारा है ख़ुदा ख़ैर करे हो गया दर्द सिवा क्या हुआ बे-दर्द को आज शिकवा-ए-दर्द गवारा है ख़ुदा ख़ैर करे अब गरेबाँ ही सलामत है न दामन बाक़ी फिर बहारों ने पुकारा है ख़ुदा ख़ैर करे इक फ़ुसूँ-कार है ग़ारत-गर-ए-होश-ओ-तमकीं जिस ने शीशे में उतारा है ख़ुदा ख़ैर करे ख़िर्मन-ए-ज़ब्त-ओ-सुकूँ तेरा ख़ुदा हाफ़िज़ है जल्वा-ए-यार शरारा है ख़ुदा ख़ैर करे देखिए क्या हो कि आमादा-ए-फ़रियाद है दिल अब न कुछ ज़ब्त का यारा है ख़ुदा ख़ैर करे कल जिएँ या न जिएँ आज तिरे जाने पर वक़्त मर मर के गुज़ारा है ख़ुदा ख़ैर करे करवटें वक़्त बदलता है उठो चारागरो कब से बेचारगी चारा है ख़ुदा ख़ैर करे कितने ईसा हैं जो इस दौर में देते हैं जवाब फिर सलीबों ने पुकारा है ख़ुदा ख़ैर करे फिर कोई बन के मेहरबाँ न करे इस पे नज़र ग़म को हँस हँस के निखारा है ख़ुदा ख़ैर करे ज़िंदगी याद से तेरी न हो ग़ाफ़िल ऐ दोस्त अब यही एक सहारा है ख़ुदा ख़ैर करे क्या मिले दिल कि नज़र भी नहीं मिलती 'आमिर' हुस्न ख़ुद-बीं-ओ-ख़ुद-आरा है ख़ुदा ख़ैर करे