कोई आवाज़ देता आ रहा था जाने कब से तो मैं बाहर निकल कर आ गया अपने सबब से उदासी देख ये चेहरे जो तेरे काम के हैं न जाने क्यों दिखाई दे रहे हैं बे-तलब से मैं ग़ालिब आ चुका था अर्सा-ए-हंगाम लेकिन कोई हारा हुआ लम्हा निकल आया अक़ब से कहाँ की छत कहाँ दीवार-ओ-दर कैसी सुकूनत मुक़द्दर दश्त को दहलीज़ भी करता है ढब से तो क्या फ़ुर्सत में भी मसरूफ़ रहता हूँ मैं अक्सर चलो महसूस कर लेता हूँ ये एहसास अब से ये दुनिया भी नहीं थी और अब तो ज़िंदगी भी बहुत आसाँ हुई वो नाम याद आया है जब से हवा ने ज़ख़्म की शिद्दत को ख़ुशबू कर दिया था छलकता जा रहा था रंग वो मल्बूस-ए-शब से ये शब दर-अस्ल है कोहराम दिल के डूबने का सितारो शोर ऐसा कब हुआ था आप सब से इज़ाफ़ा कब हुआ था रौशनी में आसमाँ पर अधूरी नींद से मैं उठ गया था रात तब से