कोई अच्छा लगे कितना ही भरोसा न करो हर किसी को कभी अपनी तरह समझा न करो जिस में तूफ़ान भँवर मौज न गहराई हो ऐसे पानी में कभी भूल के उतरा न करो चंद सपने ही तो टूटे हैं अभी साँस नहीं इस तरह अपनी तमन्नाओं को मैला न करो बंद कमरे से निकल आओ कि दुनिया है बड़ी हाथ पर हाथ धरे बैठ के सोचा न करो हम ने माना कि बहुत टूट चुके हो फिर भी चल पड़े हो तो कहीं राह में ठहरा न करो सर उठाती हुई मौजों से हवाओं ने कहा वक़्त के साथ चलो वक़्त से उलझा न करो न जला पाँव नए दीप कोई बात नहीं कम से कम उन को जो जलते हैं बुझाया न करो चाहे कितने ही घने क्यूँ न हों साए उस के नीम के पेड़ से आमों की तमन्ना न करो उन ज़मीनों को महकने दो अभी पेड़ों से वक़्त से पहले उन्हें काट के सहरा न करो अपनी पहचान अगर तुम को है करनी क़ाएम सब की आवाज़ में आवाज़ मिलाया न करो डंक चाहे कोई मारे कोई चाहे डस ले ज़हर से ज़हर को 'आसिफ़' कभी मारा न करो