कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से लब-ए-बाम आ के खड़े हो न खुले बालों से रोज़-ओ-शब किस लिए रहता हूँ इलाही बेताब न तो गोरों से मोहब्बत न मुझे कालों से जोश-ए-वहशत में जो जंगल की तरफ़ जा निकला तप चढ़ी शेर-ए-नियस्ताँ को मिरे नालों से कोई कुछ इश्क़ का करता है बयाँ कोई कुछ तंग आया हूँ मैं इस क़ज़िया के दल्लालों से बेशतर सुब्ह-ए-शब-ए-वस्ल से हम गुज़़रेंगे ज़ोर-ए-अदबार चलेगा न ख़ुश-इक़बालों से मस्त हाथी है तिरी चश्म-ए-सियह मस्त ऐ यार सफ़-ए-मिज़्गाँ उसे घेरे हुए है भालों से रू-ए-ख़ूबाँ से मिलेगा हमें बोसा कि नहीं हाल इन शक्लों का कुछ पूछिए रम्मालों से आरज़ी हुस्न से नफ़रत ये हुई है दिल को रुत्बा ज़ुल्फ़ों को नहीं मकड़ियों के जालों से ख़त-ए-शब-गूँ ने निकल कर अबस अंधेर किया काफ़िरिस्ताँ तो वो रुख़ आगे ही था ख़ालों से दो जहाँ हश्र के दिन होवेंगे बाहम मौजूद मुत्तफ़िक़ होंगे इधर वाले उधर वालों से दिल हसीनों के तसव्वुर से बनाया ख़ाली आईना-ख़ानों में कसरत रही तिमसालों से कुछ तो हल्का करें ख़ार-ए-रह सहरा-ए-जुनूँ बोझ लंगर का हुए हैं कफ़-ए-पा छालों से इन के बोसों की तमन्ना है लबों को 'आतिश' आइना कस्ब-ए-सफ़ा करते हैं जिन गालों से