कोई अदा तो मोहब्बत में पाई जाती है कि जिस पे जान की बाज़ी लगाई जाती है सितम में उन के कमी आज भी नहीं कोई मगर अदा में हमिय्यत सी पाई जाती है जो साँस लेने से भी दिल में दिखती रहती है वो चोट और भी ज़िद से दिखाई जाती है सितम किया कि करम उस ने मुझ पे कुछ भी सही ज़बाँ पे बात अज़ीज़ों की लाई जाती है उठा चुकी है तबीअ'त जो बंदगी के मज़े किसी के जौर से वो बाज़ आई जाती है ये पूछते जो जहाँ-आफ़रीं कहीं मिलता तिरे जहान में राहत भी पाई जाती है तड़प रहे हो बताओ 'जिगर' कहाँ है चोट कहीं तबीअ'त से हालत छुपाई जाती है