कोई और दास्ताँ थी दर-ए-दास्ताँ से आगे मुझे ले गया था इक दिन कोई आसमाँ से आगे मुझे क्या दिखाई देता कि हर इक तरफ़ धुआँ था मैं निकल गया था शायद तिरी कहकशाँ से आगे तिरे आस्ताँ से आगे कोई रास्ता नहीं है कोई कैसे जा सकेगा तिरे आस्ताँ से आगे मैं कभी वहाँ से आगे न गया न जा सकूँगा मुझे कुछ ख़बर नहीं है कि है क्या वहाँ से आगे कभी था यक़ीं के पीछे तो कभी गुमाँ के पीछे मगर अब यक़ीन मेरा है मिरे गुमाँ से आगे मुझे बस यही पता है कि थे साथ साथ दोनों हुआ मैं कहाँ से पीछे हुआ तू कहाँ से आगे