कोई छोटा यहाँ कोई बड़ा है ये सारा खेल ज़ालिम वक़्त का है वो सर करते हैं जिन को हौसला है वगर्ना ज़िंदगी इक मरहला है तुझे मालूम क्या है लज़्ज़त-ए-ग़म तिरा दिल इश्क़ से ना-आश्ना है जो ख़ुद वाक़िफ़ नहीं मंज़िल से अपनी ख़ुदा बख़्शे हमारा रहनुमा है डुबोएगा उसे क्या कोई तूफ़ाँ ख़ुदा कश्ती का जिस की नाख़ुदा है छुपाऊँ आइने से क्या हक़ीक़त बड़ा कम-बख़्त है सच बोलता है फ़क़त इक दरमियाँ पर्दा है वर्ना तिरा मेरा अज़ल से वास्ता है मिला कर हाथ हम से फ़ाएदा क्या वही अब तक दिलों में फ़ासला है नज़र जाती नहीं 'असग़र' किसी पर नज़र में जब से वो जल्वा-नुमा है