कोई देखे तो ज़रा कैसी सज़ा देता है मेरा दुश्मन मुझे जीने की दुआ देता है हाकिम-ए-वक़्त भी हालात से आजिज़ आ कर वक़्त के सामने सर अपना झुका देता है क्या हुआ तू ने जो ग़ुर्बत में छुड़ाया दामन ऐसे हालात में हर कोई दग़ा देता है लुत्फ़ आता नहीं हो कर भी शिकम-सेर तुम्हें हम ग़रीबों को तो फ़ाक़ा भी मज़ा देता है दूर आकाश में उड़ता हुआ सूखा पत्ता आने वाले किसी तूफ़ाँ का पता देता है हाथ फैलाऊँ किसी ग़ैर के आगे क्यूँ-कर मुझ को हर चीज़ बिना माँगे ख़ुदा देता है जिस की आवाज़ को सुन कर मैं तड़प जाता हूँ मेरे अंदर से मुझे कौन सदा देता है कोई मंज़िल पे नहीं छोड़ता ले जा के 'रफ़ीक़' हर कोई दूर से बस राह दिखा देता है