कोई देखे तो ये अंदाज़ सताने वाला मुझ से ग़ाफ़िल है मिरे ख़्वाब में आने वाला बाज़ औक़ात ये देखा है तिरी गलियों में रास्ता भूल गया राह बताने वाला दर्स-ए-इबरत मिरा अंजाम है दुनिया के लिए अब तिरी बातों में कोई नहीं आने वाला गुमरही का मुझे एहसास दिला देता है बाज़ औक़ात कोई ठोकरें खाने वाला मीठी मीठी सी मिरे दिल में कसक छोड़ गया ख़ल्वत-ए-ज़ेहन में चुपके से दर आने वाला घर में ये जश्न-ए-चराग़ाँ का समाँ क्या मा'नी इस ख़राबे में भला कौन है आने वाला अपने आ'माल-ओ-अक़ाएद को परखते रहिए अब कोई और पयम्बर नहीं आने वाला क्या कहूँ कौन है मौज़ू-ए-सुख़न ऐ 'ताहिर' एक किरदार तराशा है फ़साने वाला