कोई देता है किसी को भी तो क्या देता है दस्त-ए-एहसान को मीज़ान पे ला देता है कोई तो संग-ए-लब-ए-राह सा मूनिस ठहरे राह का मोड़ जो चुपके से बता देता है शहर-ए-गुम-गश्ता का वो कतबा जो है गर्द-आलूद हर मुसाफ़िर उसे जीने की दुआ देता है ये मिरा अहद है तावील-ए-सुकूनत दे कर घर के दरवाज़े को दीवार बना देता है 'क़ौस' बे-सूद नहीं जाता है पानी का लहू ये टपकता है तो रंगीन फ़ज़ा देता है