कोई दिल भी नफ़रत से ख़ाली नहीं है ख़ुदा तेरी दुनिया मिसाली नहीं है अज़ानों की रस्में अदा हो रही हैं मगर इन में जोश-ए-बिलाली नहीं है मिरे अह्द के आलिमों की न पूछो कोई भी तो इन में ग़ज़ाली नहीं है चमन जो मोहब्बत का सूखा पड़ा है ये वो बाग़ है जिस का माली नहीं है हक़ीक़त है रंग-ए-सुख़न में नुमायाँ मिरी शायरी तो ख़याली नहीं है