कोई दिल-जूई नहीं थी कोई शुनवाई न थी जैसे अहल-ए-शहर से मेरी शनासाई न थी मुझ को इक चुप-चाप से चेहरे ने ज़ख़्मी कर दिया मैं ने ऐसी चोट सारी ज़िंदगी खाई न थी ग़ौर से देखें तो है यादों के रंगों का कमाल इस क़दर दिलकश कभी तस्वीर-ए-तन्हाई न थी कर दिया जिस ने मुझे फिर ज़िंदगी से हम-कनार था मिरा ज़ौक़-ए-यक़ीं तेरी मसीहाई न थी बाग़बाँ की इक ज़रा सी लग़्ज़िश-ए-तरतीब से मौसम-ए-गुल था मगर गुलशन में रानाई न थी जिन से थी इंसाफ़ की उम्मीद अहल-ए-दर्द को ग़ौर से देखा तो उन आँखों में बीनाई न थी ना-ख़ुदा मुझ को अपाहिज कर गया वर्ना 'असद' आसमाँ ऊँचा न था दरिया में गहराई न थी