कोई फ़िहरिस्त लफ़्ज़ों की या गूगल को खंगालेगा वो मेरी चुप से अब कोई नया मतलब निकालेगा मुक़ाबिल कर दिया उस के अगर आईना मैं ने तो ज़बाँ से ज़हर उगलेगा कोई पत्थर उठा लेगा मुझे मा'लूम है उस तक तो ख़ाली ख़त ही जाएगा मिरा क़ासिद ही दीमक बन के लफ़्ज़ों को उड़ा लेगा ज़रा दामन को फैलाया कई लोगों ने दुख डाले मैं समझी थी कोई हमदर्द मेरे ग़म उठा लेगा खड़े थे लोग साहिल पर तमाशा देखने वाले मैं ख़ुश-फ़हमी में डूबी थी कोई आ कर बचा लेगा अपाहिज सारी दुनिया है कोई अंधा कोई बहरा कोई माँगे मिरे सपने कोई आँखें चुरा लेगा मुझे इस दिल के ज़िंदाँ से है बेहतर आँख का दरिया डुबोएगा ये पानी गर तो लाशें भी उछालेगा लब-ए-साहिल तो आते हैं फ़क़त कुछ ख़ोल सीपों के जो गहराई में जाएगा वही गौहर निकालेगा किसी मिट्टी को गूँधेगा कहीं पत्थर तराशेगा हुनर है उस के हाथों में नई 'फ़ौज़ी' बना लेगा