कोई गर अश्क भी पोंछे तो ग़म हल्का नहीं होता घड़ी आगे बढ़ा देने से दिन छोटा नहीं होता पिलाती हैं किसे अब दूध माएँ बा-वज़ू हो कर तभी तो हम में अब टीपू कोई पैदा नहीं होता गुनाहों की भयानक बर्फ़-बारी हम को खा जाती ख़ुदा के रहम का सूरज अगर चमका नहीं होता कहीं भी जा के बस जाएँ वतन की याद आती है किसी सौतेली माँ से मुतमइन बेटा नहीं होता तिरी यादों के दरिया में हर इक शब ये नहाती हैं बदन ग़ज़लों का मेरी ऐसे ही गोरा नहीं होता 'नबील' इख़्लास बस देहात के लोगों का शेवा है किसी भी शहर की मिट्टी में ये पौदा नहीं होता