कोई इल्ज़ाम मेरे नाम मेरे सर नहीं आया वो जो तूफ़ान अंदर था मिरे बाहर नहीं आया ये किस की दीद ने आँखों को भर डाला ख़ला से यूँ कि फिर आँखों में कोई दूसरा मंज़र नहीं आया जुनूँ-बरदार कोई रू-ए-सहरा पर नहीं देखा कनार-ए-आबजू प्यासा कोई लश्कर नहीं आया हुई बारिश दरख़्तों ने बदन से गर्द सब झाड़ी कोई सावन कोई मौसम मिरे अंदर नहीं आया कहीं पथरा गई आँखें कहीं शल हौसलों के पाँव कहीं रह-रौ नहीं पहुँचा कहीं पर घर नहीं आया कभी कश्ती पे कोई बादबाँ मैं ने नहीं रक्खा उड़ानों के लिए मेरी कोई शहपर नहीं आया नहीं हो कर भी है हर साँस में शामिल मुक़ाबिल भी मगर ज़ी-होश कहते हैं कोई जा कर नहीं आया