कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़ किसी की जान की दुश्मन न हो बला-ए-फ़िराक़ हज़ार तरह के सदमे इसे गवारा हैं मगर उठा नहीं सकता है दिल जफ़ा-ए-फ़िराक़ लबों पे जान है अब सदमा-हा-ए-दूरी से ख़बर विसाल की देती है इंतिहा-ए-फ़िराक़ ज़बान बंद है ये जोश-ए-ग़म का आलम है बयान हो नहीं सकता है माजरा-ए-फ़िराक़ करें जो ज़ब्त कलेजा सराहिए उन का कि आसमाँ को बुलाते हैं नाला-हा-ए-फ़िराक़ जुदा 'हफ़ीज़' हुआ कौन तेरे पहलू से लबों पर आठ-पहर है जो हाए हाए फ़िराक़