कोई ख़ुश है कोई नाकाम है ऐसा क्यों है है कहीं सुब्ह कहीं शाम है ऐसा क्यों है जिन की आँखों में खटकता था मैं काँटे की तरह उन के होंटों पे मिरा नाम है ऐसा क्यों है चाहे जिस की हो ख़ता कोई भी मुजरिम हो मगर तिरे दीवानों पे इल्ज़ाम है ऐसा क्यों है हुस्न की अंजुमन-आराइयाँ तस्लीम मगर इश्क़ आवारा-ओ-बदनाम है ऐसा क्यों है आज हर शख़्स को हर मोड़ पे हर महफ़िल में शिकवा-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है ऐसा क्यों है मैं भी मम्नून हूँ साक़ी का मगर मेरे लिए कोई साग़र न कोई जाम है ऐसा क्यों है जब है बे-पर्दा कोई साहब-ए-जलवा 'अनवर' रौशनी सिर्फ़ लब-ए-बाम है ऐसा क्यों है