कोई किसी का कहीं आश्ना नहीं देखा सिवाए उस के इन आँखों ने क्या नहीं देखा ये लोग मना जो करते हैं इश्क़ से मुझ को इन्हों ने यार को देखा है या नहीं देखा भलाई क्या दिल-ए-काफ़िर ने बुत में पाई है जहाँ में कोई इतना बुरा नहीं देखा कुछ उस जहाँ में न देखेंगे क्यूँकि अंधे हैं इसी जहाँ में जिन्हों ने ख़ुदा नहीं देखा ब-रंग-ए-साया ओ ख़ुर्शीद ऐ 'बयाँ' मैं ने कभू रक़ीब से उस को जुदा नहीं देखा