कोई मेरा इमाम था ही नहीं मैं किसी का ग़ुलाम था ही नहीं तुम कहाँ से ये बुत उठा लाए इस कहानी में राम था ही नहीं जिस क़दर शोर-ए-आब-ओ-गिल था यहाँ उस क़दर एहतिमाम था ही नहीं इस लिए साध ली थी चुप मैं ने इस से बेहतर कलाम था ही नहीं हम ने उस वक़्त भी मोहब्बत की जब मोहब्बत का नाम था ही नहीं तू कहाँ रास्ते में आ गई है ज़िंदगी तुझ से काम था ही नहीं वक़्त ने ला खड़ा किया उस जा जो हमारा मक़ाम था ही नहीं इस लिए ख़ास कर दिया गया इश्क़ आम लोगों का काम था ही नहीं