कोई मुझ में है मैं किसी में हूँ मैं अंधेरा हूँ रौशनी में हूँ तेरे ग़म में हूँ मैं ख़ुशी में हूँ धूप में और चाँदनी में हूँ मौत जिस से नजात देती है क़ैद ऐसी ही ज़िंदगी में हूँ क्यूँ मिरे दोस्त मुझ से बचते हैं ऐसा लगता है मुफ़्लिसी में हूँ मेरे ऐब-ओ-हुनर छुपें कैसे मैं 'नवाज़' अपनी शाइ'री में हूँ