कोई मुश्किल नहीं इंसाँ होना आदमी सीख ले नादाँ होना कुछ भी होता नहीं इतना आसाँ जितना आसाँ है परेशाँ होना अच्छे अच्छों को बना दे शैताँ कोई उम्मीद न इम्काँ होना दिल की मानूँगा न अब दिलबर की हो गया जितना था नुक़साँ होना फ़िक्र-ए-फ़र्दा से हुआ है सब कुछ वर्ना कुछ भी न था आसाँ होना इश्क़-बाज़ी ही सबब है 'पर्वाज़' यूँ तिरा बे-सर-ओ-सामाँ होना