कोई न हर्फ़-ए-नवेद-ओ-ख़बर कहा उस ने वही फ़साना-ए-अशुफ़्ता-तर कहा उस ने शिराकत-ए-ख़स-ओ-शोला है कारोबार-ए-जुनूँ ज़ियाँ-कदे में किस अंजाम पर कहा उस ने उसे भी नाज़-ए-ग़लत-कर्दा-ए-तग़ाफ़ुल था कि ख़्वाब ओ ख़ेमा-फ़रोशी को घर कहा उस ने तमाम लोग जिसे आसमान कहते हैं अगर कहा तो उसे बाल ओ पर कहा उस ने उसे अजब था ग़ुरूर-ए-शगुफ़्त-ए-रुख़्सारी बहार-ए-गुल को बहुत बे-हुनर कहा उस ने ये गुल हैं और ये सितारे हैं और ये मैं हूँ बस एक दिन मुझे तालीम कर कहा उस ने मिरी मिसाल थी सफ़्फ़ाकी-ए-तमन्ना में सुपुर्दगी में मुझे क़त्ल कर कहा उस ने मैं आफ़्ताब-ए-क़यामत था सो तुलू हुआ हज़ार मतला-ए-ना-साज़-तर कहा उस ने