कोई नाम है न कोई निशाँ मुझे क्या हुआ मैं बिखर गया हूँ कहाँ कहाँ मुझे क्या हुआ किसे ढूँडता हूँ मैं अपने क़़ुर्ब-ओ-जवार में ऐ फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-दोस्ताँ मुझे क्या हुआ ये कहाँ पड़ा हूँ ज़मीं के गर्द-ओ-ग़ुबार में वो कहाँ गया मिरा आसमाँ मुझे क्या हुआ कोई रात थी कोई चाँद था कई लोग थे वो अजब समाँ था मगर वहाँ मुझे क्या हुआ मिरे रू-ब-रू मुझे मैं दिखाई नहीं दिया मिरे आईने मिरे राज़-दाँ मुझे क्या हुआ