कोई नहीं है इंतिज़ार सुब्ह-ए-विसाल के सिवा कोई तलब नहीं मुझे तेरे जमाल के सिवा किस के सवाल पर ये दिल रोता है सारी सारी रात कौन हबीब है मिरा तेरे ख़याल के सिवा कोई नहीं जो रूह पर ऐसा भला असर करे नश्शे तमाम हैं वजूद तेरी मिसाल के सिवा चश्मा-ए-ख़्वाब से मुझे दोनों जहाँ अता हुए कुछ भी नहीं है मेरे पास रख़्त-ए-मआल के सिवा आओ हवा के वास्ते मिल के सभी दुआ करें रस्ता कोई दिखाई दे सूरत-ए-हाल के सिवा