कोई पहरा लगा नहीं होता मैं ही फिर भी रहा नहीं होता ख़ून दिल का हुआ तो ये जाना नक़्श क्यूँ देर-पा नहीं होता वक़्त क्यूँ है ग़ुबार आँखों में अक्स भी आश्ना नहीं होता कुछ तो दिल से कहा है आँखों ने ज़ख़्म-ए-दिल क्या हरा नहीं होता फिर उसे ही तलाश करता हूँ जिस का कोई पता नहीं होता जो भी अपनी ज़बाँ से देता वो ज़ाइक़ा बद-मज़ा नहीं होता