कोई पर्दा मियान-ए-इश्क़ हाइल हो नहीं सकता ये हद है तो भी अब मद्द-ए-मुक़ाबिल हो नहीं सकता तिरा अहद-ए-मोहब्बत टूट कर अहद-ए-मोहब्बत है मगर दिल टूट जाता है तो फिर दिल हो नहीं सकता मोहब्बत में परस्तिश का मक़ाम ऊँचा सही लेकिन ये ग़म इंसान की फ़ितरत में शामिल हो नहीं सकता मिरे अज़्म-ए-सफ़र में ये तिरा हुस्न-ए-सुकून-अफ़ज़ा चराग़-ए-राह बन सकता है मंज़िल हो नहीं सकता गिराया है नज़र की उस बुलंदी से मुझे तू ने मैं अब अपनी निगाहों के भी क़ाबिल हो नहीं सकता