कोई पूरा जो मुद्दआ' न हुआ ज़िंदगी के लिए बुरा न हुआ ऐ ग़म-ए-दिल वो आ के लौट गए ख़त्म तेरा भी अब फ़साना हुआ कीजिए क्या कि गिर्या-ए-पैहम दिल-ए-मुज़्तर का आसरा न हुआ वो बताएगा क़ुर्ब-ओ-दूरी को पास रह कर जो आप का न हुआ जान आँखों में आ गई लेकिन चारागर दर्द-आश्ना न हुआ क्या बिगाड़ेगा ऐ 'कलीम' आख़िर गर मुख़ालिफ़ तिरा ज़माना हुआ