कोई रुस्वाई है न शोहरत है ये मोहब्बत है या करामत है शौक़ मेरा नहीं जुनूँ-अंगेज़ सो बयाबाँ को मुझ से वहशत है रंग क्या क्या हैं ज़ेर-ए-बंद-ए-क़बा दर-ओ-दीवार तक को हैरत है वो तग़ाफ़ुल-शिआर क्या जाने इश्क़ तो हुस्न की ज़रूरत है मेरे ख़ुर्शीद ख़ुश-गुमान न हो मुस्कुराना तो उस की आदत है