कोई सवाल न कोई जवाब दिल में है बस एक दर्द-ओ-अलम का सहाब दिल में है जराहतें जो लगीं तन पे ज़ेब-ए-तन कर लीं जो दिल के ज़ख़्म थे उन का हिसाब दिल में है अगर लहू है तो आँखों में क्यूँ नहीं आता ये मौज-ए-ख़ूँ है कि मौज-ए-सराब दिल में है मुदाम ज़ाहिर-ओ-बातिन में ये ख़लीज रही निगाह ग़र्क़-ए-गुनह एहतिसाब दिल में है सहीफ़ा-ए-अलम-ए-रोज़गार हाथों में खुली हुई तिरे ग़म की किताब दिल में है नज़र के सामने उट्ठेंगे रोज़-ए-हश्र मगर वो दिल में दफ़्न रहेगा जो ख़्वाब दिल में है अगर जिगर में हो सारे-जहाँ का दर्द तो ख़ैर ये क्या कि सारे-जहाँ का अज़ाब दिल में है